उत्तराखंड

Badrinath Dham: आज से शीतकाल के लिए बंद हो जाएंगे बदरीनाथ के कपाट

चमोली। बदरीनाथ धाम के कपाट आज शीतकाल के लिए बंद हो जाएंगे। कपाट बंद होने के बाद इस वर्ष की चारधाम यात्रा का समापन भी हो जाएगा। कपाट बंद होने से पहले मुख्य पुजारी रावल ईश्वर प्रसाद नंबूदरी स्त्री वेश धारण कर माता लक्ष्मी की प्रतिमा को भगवान बदरी-विशाल के धाम के गर्भगृह में प्रतिष्ठापित करेंगे। जिसके बाद पुजारी उद्धव जी व कुबेर जी को मंदिर प्रांगण में लाएंगे। दोपहर 3:33 बजे पर भगवान बदरीनाथ के कपाट बंद कर दिए जाएंगे। वहीं भगवान बदरी-विशाल के कपाट बंद होने के बाद लोगों को मंदिर तक जाने की अनुमति नहीं दी जाती है। इस दौरान बदरीनाथ धाम को गेंदे के फूलों से सजाया गया है।

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बदरीनाथ धाम में भगवान विष्णु नर और नारायण रूप में विराजमान हैं। धाम में भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी, भगवान गणेश, कुबेर और उद्धव के विग्रह भी विराजित हैं। इसलिए बदरीनाथ के कपाट बंद करने समय पुजारी (रावल) को स्त्री की तरह श्रृंगार करना पड़ता है। वहीं उद्धव जी भगवान कृष्ण के बाल सखा होने के साथ-साथ उनसे उम्र में बड़े भी हैं, जिससे रिश्ते में उद्धव जी माता लक्ष्मी के जेठ हुए। हिंदू धर्म में बहू जेठ के सामने नहीं आती है, जिस कारण मंदिर से उद्धव जी के बाहर आने के बाद ही माता लक्ष्मी मंदिर में विराजित होती हैं। माता लक्ष्मी की विग्रह डोली को पर पुरुष न छुए, इसलिए मंदिर के पुजारी को स्त्री वेश धारण कर माता के विग्रह को उठाते हैं. यह परंपरा अतीत से चली आ रही है।

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बता दें कि भगवान बदरी-विशाल के कपाट शीतकाल के लिए श्रद्धालुओं के लिए दोपहर 3:33 पर कपाट बंद कर दिए जाएंगे. शुक्रवार को धाम में शाम करीब 10 हजार से अधिक श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचे। बदरीनाथ धाम को 15 क्विंटल फूलों से भव्य रूप से सजाया गया है। इस साल 18 लाख 25 हजार से अधिक श्रद्धालुओं ने भगवान बदरी विशाल के दर्शन किए. वहीं 14 नवंबर से बदरीनाथ धाम में चल रही पंच पूजाओं में पहले दिन धाम में स्थित गणेश मंदिर,दूसरे दिन केदारेश्वर व आदि शंकराचार्य मंदिर और तीसरे दिन खड़क पूजा हुई।

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इस मौके पर पुजारी ने माता लक्ष्मी की पूजा कर उन्हें कढ़ाई भोग अर्पित किया। इसके साथ ही इस साल की चारधाम यात्रा समापन हो जाएगी। कपाट बंद होने से पहले चल रहे पांचों प्रकार की पूजा के क्रम में धाम के मुख्य पुजारी रावल ईश्वरी प्रसाद नंबूदरी ने स्त्री वेश धारण कर माता लक्ष्मी को बदरी विशाल के गर्भगृह में विराजने के लिए आमंत्रित किया।


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