उत्तराखंड

गुरुकुल कांगड़ी में ‘उत्तराखंड के इतिहास के विविध आयाम’ विषय पर संगोष्ठी का आयोजन

गुरुकुल कांगड़ी समविश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग और इतिहास संकलन समिति उत्तराखंड प्रांत के संयुक्त तत्वावधान में उत्तराखंड के इतिहास के विविध आयाम विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी सत्यकेतु विद्यालंकार सभागार, प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग में राष्ट्रीय संगोष्ठी को ऑनलाइन संबोधित करते हुये समविश्वविद्यालय के कुलाधिपति डॉक्टर सतपाल सिंह, बागपत सांसद ने मुख्य अतिथि बतौर कहा कि उत्तराखंड का इतिहास-हिमालय का इतिहास है, गंगा का इतिहास देवभूमि का इतिहास, ऋषि-मुनियों का इतिहास, शास्त्रों का इतिहास, गुरुकुल काँगड़ी समविश्वविद्यालय के संस्थापक स्वामी श्रद्धानन्द का इतिहास है। वहीं उन्होने कहा कि भारत का इतिहास सृष्टि के इतिहास से प्राचीन है। बदरी नाथ, शंकराचार्यमठ की स्थापना 500 ई वी पूर्व मानी जाती है। भाषा और संस्कृति से मानव सभ्यता का पता लगाया जा सकता है। मानव विकास को लेकर इतिहासकारो की अवधारणा रही है संस्कृति और सभ्यता को लेकर नगरीकरण का विकास हुआ है। इस तरह की अवधारणा हडप्पा और मोहन जोदड़ो सभ्यता में मिलती है।

अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना नई दिल्ली के राष्ट्रीय संगठन मंत्री बालमुकुंद पाण्डेय ने कहा कि स्वामी दयानन्द सरस्वती, स्वामी श्रद्धानन्द, विवेकानन्द, महात्मा गांधी और मदन मोहन मालवीय के इतिहास को पल्लवित करना है तो उनके इतिहास के प्रति चिन्तन और चेतन्य होने की अत्यन्त आवश्यकता है। आज भारत को भारत माता कहकर पुकारते है तो हमारे अन्दर भारत के प्रति श्रद्धा का भाव उत्पन्न हो जाता है। इतिहास सांस है और पांच नदियों से निकलने वाली गोमुखी तरह मुंह निकाले यह भारत हमें देखता है जिस तरह से इतिहास कमल से कोमल है, क्योंकि इसमें पवित्रता है। इसे समझने के लिए हमें ऋचाएं और वेदों के प्रति विश्वास जगाना होगा। उन्होंने कहा कि इतिहास का संकलन करना है तो गांव-गांव जाकर इतिहास को खोजना होगा। कलम को विजयी बनाना होगा। इतिहास का काम स्वाभिमान है। इतिहास को समतुल्य करने की आवश्यकता है जिस तरह से स्वतंत्रता आंदोलन में कविता, गीत और नाटकों के माध्यम से देश को स्वतंत्र कराया था। इसी को संघर्ष ही भारत कहते हैं।

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गुरुकुल कांगड़ी समविश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सोमदेव शतांशु ने कहा कि वेदों में इतिहास का वर्णन नहीं है। वेदों से नामों की उत्पत्ति हुई है जैसे गंगा, नगरीय आदि का नाम देखने को मिलता है। उत्तराखण्ड में इतिहास की बाहुल्यता देखने की मिलती है। ऐसा भी कहा जाता है कि वेदों का निर्माण वेद व्यास ने देवीभूमि उत्तराखण्ड में ही किया था। उत्तराखण्ड में स्वामी दयानन्द सरस्वती ने अखण्ड ज्योति जलाकर वैदिक संस्कृति का प्रचार-प्रसार किया था।

उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर दिनेशचन्द्र शास्त्री ने कहा कि भारतीय इतिहास गौरवशाली रहा है। आज जरूरत इस बात की है कि हमें अपने गौरवशाली इतिहास को देश की भावी पीढ़ी को अवगत कराने के लिए आगे आकर प्रयास करने चाहिए। हमारे अनेक महान पूर्वजों ने देश के गौरवशाली इतिहास को गौरवान्वित करने का काम किया है। वैदिक परम्परा में गौरवशाली इतिहास को अपार भण्डार समाहित है जिसको संग्रहित कर समाज के सामने तथ्यपूर्ण ढ़ंग से प्रस्तुत करने की आवश्यकता है।

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संगोष्ठी के संयोजक प्रो. प्रभात कुमार ने कहा कि इस संगोष्ठी का उद्देश्य देश के गौरवशाली इतिहास को वर्तमान पीढ़ी व आने वाली युवा पीढ़ी को अवगत कराने की दिशा में आगे बढ़कर कार्य करने के लिए देश के युवाओं को प्रोत्साहित करना है। संगोष्ठी में आए देश भर के विद्वानों के अनुभवों का लाभ निश्चय ही आने वाले समय में लाभकारी होगा। इस संगोष्ठी से जो मंथन निकलेगा वह विशेषकर देश के युवाओं के लिए मार्गदर्शन के क्षेत्र में सहायक होगा जिसके माध्यम से वह देश के गौरवशाली इतिहास से अवगत होंगे।

अखिल भारतीय इतिहास संकलन समिति के प्रान्तीय संगठन मंत्री डॉ. अभिनव तिवारी ने कहा कि देश में भारतीय गौरवशाली इतिहास के साथ छेडछाड़ कर प्रकाशित करा उसे अभी तक पढ़ाया जाता रहा है। अािखल भारतीय इतिहास संकलन समिति राष्ट्रीय व्यापक संगठन है जो तथ्यों की प्रमाणिकता के साथ इतिहास को प्रकाशन कर आगे बढ़ाने का कार्य कर रहा है जिससे कि इतिहास के वास्तविक स्वरूप से देश के युवाओं को अवगत कराया जा सके। स्वतंत्रता सेनानी एवं पूर्व प्रोफेसर भारत भूषण विद्यालंकार ने कहा कि उत्तराखण्ड का इतिहास गौरवपूर्ण व एतिहासिक रहा है। जहां पर विभिन्न ऋषियों, संतों व क्रान्तिकारियों ने देश की स्वतंत्रता आंदोलन में अग्रणी भूमिका का निर्माण किया। जनपद हरिद्वार व गुरुकुल कांगड़ी का जिक्र करें तो यह दोनों क्षेत्र स्वतंत्रता सेनानियों की कर्मस्थली रहे हैं। गुरुकुल कांगड़ी रानीलक्ष्मी बाई, भगत सिंह व कई अन्य देशभक्तों की कर्मस्थली रहा है। वहीं हरिद्वार जनपद के विभिन्न स्वतंत्रता सेनानियों ने स्वतंत्रता आंदोलन व इससे पूर्व के आंदोलनों में अपना बहुमूल्य योगदान दिया है जिसे इतिहास के क्षेत्र में भुलाया नही जा सकता।

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समविश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. सुनील कुमार ने सभी आगन्तुकों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि इस प्रकार के आयोजनों में देश में आज बहुत आवश्यकता है। ऐसे कार्यक्रमों से देश व समाज में जागरूकता का संचार होता है। निश्चय ही आज इस आयोजन से जो सार निकलकर आएगा वह देश के युवाओं के लिए प्रेरणादायक सिद्ध होगा। उन्होंने कहा कि इस अवसर पर सभी का आभार व्यक्त करते हुए वह स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते हैं।

इस अवसर पर डॉ. दीनानाथ शर्मा, डॉ. महेन्द्र आहुजा, डॉ. ईश्वर भारद्वाज, डॉ. राजुल भारद्वाज को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया।

संगोष्ठी में प्रो. देवेन्द्र कुमार गुप्ता, डॉ. दीलिप कुशवाहा, डॉ. विजेन्द्र शास्त्री, डॉ. अनिता सेंगर, डॉ. रेणु शुक्ला, डॉ. राकेश शर्मा, डॉ. नवनीत परमार, प्रो. श्रवण कुमार शर्मा, प्रो. सत्येन्द्र राजपूत, प्रो. सुचित्रा मलिक, डॉ. दीपा गुप्ता, डॉ. ऋषि कुमार शुक्ला, डॉ. अभिलव तिवारी, डॉ. वेदव्रत, डॉ. मनीला, डॉ. राजीव कुरले, अभिनव त्यागी, डॉ. दीपक घोष, डॉ. सत्येन्द्र, डॉ. पंकज कौशिक, कुलभूषण शर्मा, हेमन्त सिंह नेगी, प्रमोद कुमार, प्रकाश तिवारी, प्रो0 विनय विद्यालंकार, डॉ. अजित सिंह तोमर, डॉ. मनोज कुमार, रमेश चन्द्र, विपिन कुमार, दिनेश, दिव्यांश बिष्ट, गौरव सिंह, प्राची रंगा, दीलिप, सौरभ कुमार सिंह कसाना, दीपक कुमार सहित विभिन्न शिक्षक व शिक्षकेत्तर कर्मचारी उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन डॉ. हिमांशु पण्डित ने किया।

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