उत्तराखंड

बदरीनाथ धाम से जुड़ी अनूठी परंपरा। क्या आप जानते हैं?राजमहल मे आज हुआ श्री गणेश

टिहरी। धरती पर बैकुंठ धाम कहे जाने वाले भगवान बद्री विशाल के अभिषेक के लिए नरेंद्रनगर के राजमहल में आज पौराणिक परंपरा अनुसार,पूजा अर्चना करने के बाद टिहरी की सांसद व महारानी राज्य लक्ष्मी शाह की अगुवाई में नगर की सुहागिन महिलाओं द्वारा पीला वस्त्र धारण कर मूसल व सिलबट्टे से तिलों का तेल पिरोया गया
इस तेल का प्रयोग बदरीनाथ धाम में अखंड जोत जलाने और भगवान के लेपन मे किया जाएगा। शाम को राजमहल से गाडू घड़ा कलश यात्रा को बदरीनाथ धाम के लिए रवाना किया गया।

यह कलश यात्रा ऋषिकेश, देवप्रयाग, श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, डिम्मर विभिन्न पड़ावों से होते हुए 11 मई शाम को बदरीनाथ धाम पहुंच जायेगी। 12 मई को कपाट खुलने के अवसर पर गाडू घड़ा के तिलों के तेल से भगवान बदरीविशाल का छह माह तक यात्रा काल में अभिषेक किया जायेगा। इस तेल से अखंड जोत भी जलती रहेगी। बता दें कि श्री बदरीनाथ धाम के कपाट 12 मई को प्रातः6 बजे विधि-विधान से खुल जायेंगे।

यह भी पढ़ें 👉  Uttarakhand: रुद्रप्रयाग हादसे के बाद सीएम धामी की यात्रियों से अपील, पर्वतीय मार्गों पर विशेष सतर्कता बरतें

क्या है गाढू घड़ा तेल कलश
महारानी तथा राजपरिवार व रियासत की लगभग सौ सुहागन महिलाओं के द्वारा सिल बट्टे पर पिस कर तिल का तेल निकाला जाता है। जिसे 25 .5 किलो के घड़े में भरकर मंदिर समिति को सौंपा जाता है। महल में निकाले गए इस तिल के तेल से बद्रीनाथ धाम का दीप प्रज्वलित रहता है। इसी तिल से भगवान के विग्रह रूप में लेप भी किया जाता है। यह यात्रा राजमहल से बद्रीनाथ तक 7 दिन में पूरी होती है इसे गाडू घडा़ कलश यात्रा कहते हैं।

यह भी पढ़ें 👉  बड़ी खबर:आईएएस बंशीधर तिवारी को मुख्यमंत्री के अपर सचिव का अतिरिक्त दायित्व

टिहरी राजपरिवार का बदरीनाथ धाम के साथ गहरा संबंध रहा है। टिहरी रियासत के समय से बदरीनाथ धाम में पूजा अर्चना और सारे प्रबंध कार्य राजपरिवार स्वयं देखता था। जनता राजा को बदरीनाथ जी के प्रतिनिधि के रूप में देखती थी। इसीलिए उन्हें बोलांदा बदरी (बोलते हुए बदरी) कहा जाता था।  लेकिन 1815 में गोऱखाओं से युद्ध के बाद टिहरी रियासत ने आधा राजपाट अंग्रेजों को दे दिया, जिसे ब्रिटिश गढ़वाल कहा जाने लगा। इस तरह राज परिवार का बदरीनाथ धाम में सीधा हस्तक्षेप कम होता गया। लेकिन बाद में राजपरिवार को बदरीनाथ धाम की कुछ परंपराओं को निभाने का अधिकार वापस मिल गया। गाड़ू घड़ा परंपरा उन्हीं परंपराओं में से एक है। इसेक अलावा बदरीनाथ धाम के कपाट खोलने की तिथि की घोषणा भी राजपरिवार के राजमहल में की जाती है। वर्तमान में टिहरी राजपरिवार का नरेंद्रनगर में राजमहल है।

यह भी पढ़ें 👉  बड़ी ब्रेकिंग न्यूज़ — रुद्रप्रयाग में भीषण सड़क हादसा! 

The Latest

To Top