उत्तराखंड के जोशीमठ में भू-धंसाव की घटना ने सभी की चिंता बढ़ा दी है। उत्तराखंड प्रशासन ने जोशीमठ इलाके को आपदा की आशंका वाला क्षेत्र घोषित कर दिया है। यहां अब तक धंसाव की घटना के चलते 610 घरों दरारें पड़ गई हैं। पहले यह संख्या 561 थी। इन डेंजर जोन में चिन्हित भवनों को सील कर दिया गया है। इसी के साथ आज एसडीआरएफ ने यहां सुई गांव में घर खाली कराने का अभियान शुरू किया तो वहीं मनोहर बाग में प्रभावितों ने खुद ही घर छोड़ने शुरू कर दिया। प्रभावित अपना सामान लेकर निकल पड़े हैं।
जोशीमठ से सामने आई आज की तस्वीरें हर किसी को भावुक कर रही हैं। आंखों में आंसू लिए और यादें समेटे लोग मजबूरन अपना घर छोड़कर जा रहे हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर जोशीमठ भेजे गए सचिव मुख्यमंत्री आर मीनाक्षी सुंदरम ने जिलाधिकारी हिमांशु खुराना को दो दिन में नगर के भवनों और उसमें रहने वाले लोगों के बारे में आंकड़े जुटाने के निर्देश दिए हैं। वहीं जलशक्ति मंत्रालय की हाईपावर कमेटी जोशीमठ पहुंच गई है।
उधर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जोशीमठ में भू-धंसाव को लेकर विशेषज्ञों के साथ उच्च स्तरीय बैठक की। इसके बाद राज्य के साथ साथ केंद्रीय एजेंसियां भी सक्रिय हो गई हैं। बताया जा रहा है कि जोशीमठ में करीब 350 मीटर का इलाका भू-धंसाव की घटना से प्रभावित हुआ है। जोशीमठ में निर्माण कार्य पर रोक लगा दी है। उत्तराखंड सरकार द्वारा बनाई गई आपदा प्रबंधन और विशेषज्ञों की टीम ने अपनी रिपोर्ट मुख्यमंत्री धामी को सौंप दी है। एक्सपर्ट टीम ने प्रभावित घरों का दौरा कर रिपोर्ट तैयार की है।
विशेषज्ञ समिति ने इस पूरी स्थिति को समझने के लिए भू-तकनीकी जांच, भूकंपीय निगरानी समेत 6 अध्ययनों की सिफारिश की है। विशेषज्ञ समिति ने कहा है कि अगस्त 2022 की रिपोर्ट में की गई सिफारिशों का पालन किया जाना चाहिए। ज्यादा नुकसान वाले घरों को तोड़ देना चाहिए और उनका मलबा हटा देना चाहिए। उन क्षेत्रों की पहचान की जानी चाहिए, जो अभी भी रहने योग्य हैं। प्रभावित जगह पर रहने वाले लोगों को तुरंत शिफ्ट किया जाना चाहिए।
विशेषज्ञ समिति ने 6 अध्ययन किए जाने की दी सलाह
• भू-तकनीकी जांच की जानी चाहिए, जरूरत पड़ने पर नींव की रेट्रोफिटिंग का भी अध्ययन किया जाए।
• क्षेत्र के उप-स्तरों को समझने के लिए जियोफिजिकल जांच की जानी चाहिए।
• क्षेत्र में भूकंपीय निगरानी होनी चाहिए।
• हाइड्रोलॉजिकल जांच होनी चाहिए, ताकि जल निकासी, झरनों, लोकल वॉटर टेबल स्रोत की पहचान हो सके।
• भू धंसाव की रियल टाइम निगरानी होनी चाहिए।
• घरों को पहुंची क्षति का आकलन होना चाहिए, रेट्रोफिटिंग होनी चाहिए।
केंद्रीय एजेंसियां भी करेंगी जांच
अब जोशीमठ की मौजूदा स्थिति पर राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA), राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (NIDM), जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी और सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट के विशेषज्ञों की टीम सर्वे करेगी और अपनी रिपोर्ट सब्मिट करेगी।





