उत्तराखंड

फिलहाल नहीं उजड़ेंगे बनभूलपुरा के 4 हजार घर और मंदिर-मस्जिद, अब 2 मई को होगा फैसला

मुकेश सक्सेना

हल्द्वानी। हल्द्वानी रेलवे अतिक्रमण मामले पर सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई मामले की अगली तारीख 2 मई निर्धारित की है। आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान रेलवे ने 8 हफ्ते का समय मांगा है। रेलवे अधिकारियों की बात सुनते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 2 मई की अगली सुनवाई तय कर दी है।

गौरतलब है कि 5 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने नैनीताल हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी, जिसमें नैनीताल हाईकोर्ट ने रेलवे की 29 एकड़ जमीन से 4365 घरों को ध्वस्त करने का आदेश दिया था। रेलवे और राज्य सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में आठ सप्ताह का समय मांगा गया है। जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने अगली तारीख 2 मई निर्धारित कर दी। सलमान खुर्शीद, प्रशांत भूषण, कॉलिन गोंजाल्वेज़ जैसे दिग्गज वकील बनभूलपुरा की अवाम की ओर से पैरवी कर रहे हैं। बनभलपुरा के जनप्रतिनिधियों का एक दल सुनवाई के समय सुप्रीम कोर्ट में मौजूद रहा। जिसमें हल्द्वानी विधायक सुमित हृदयेश भी सुनवाई के दौरान न्यायालय में मौजूद रहे। बता दें कि 5 जनवरी की अपनी पहली सुनवाई जिसमें बुलडोजर एक्शन और उत्तराखण्ड हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाई थी।

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पहले जानिए क्या था मामला

हल्द्वानी के बनभूलपुरा में रेलवे की 29 एकड़ जमीन पर लोग रहते हैं। रेलवे ने समाचार पत्रों के जरिए नोटिस जारी कर अतिक्रमणकारियों को 1 हफ्ते के अंदर यानी 9 जनवरी तक कब्जा हटाने को कहा था। उत्तराखंड की नैनीताल हाईकोर्ट ने इस अवैध कब्जे को गिराने का आदेश दिया था। इसके बाद करीब 4 हजार से अधिक कच्चे-पक्के मकानों को तोड़ा जाना था, लेकिन कोर्ट के आदेश के खिलाफ दिसंबर में कुछ लोगों ने प्रदर्शन किया और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

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हालांकि 5 जनवरी को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के अतिक्रमण हटाने के आदेश पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने कहा था कि 7 दिन में 50 हजार लोगों को विस्थापन संभव नहीं है।

हल्द्वानी रेलवे स्टेशन के आसपास का यह इलाका करीब 2 किलोमीटर से भी ज्यादा के क्षेत्र को कवर करता है। इन इलाकों को गफ्फूर बस्ती, ढोलक बस्ती और इंदिरा नगर के नाम से जाना जाता है। यहां के आधे परिवार भूमि के पट्टे का दावा कर रहे हैं। इस क्षेत्र में 4 सरकारी स्कूल, 11 निजी स्कूल, एक बैंक, दो ओवरहेड पानी के टैंक, 10 मस्जिद और चार मंदिर हैं।

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क्या है रेलवे और स्थानीय प्रशासन का दावा

रेलवे की जमीन पर इतने बड़े पैमाने पर निर्माण की अनुमति कैसे दी गई? इस पर रेल मंडल के अधिकारी विवेक गुप्ता ने कहा- रेलवे लाइनों के पास अतिक्रमण एक राष्ट्रव्यापी समस्या है। रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण का यह मामला 2013 में अदालत में पहुंचा था। तब याचिका मूल रूप से इलाके के पास एक नदी में अवैध रेत खनन के बारे में आई थी।

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