उत्तराखंड

आयाम:श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल ने रचा इतिहास — उत्तराखण्ड को मिला चिकित्सा में नया आयाम

देहरादून। श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल ने एक और ऐतिहासिक उपलब्धि अपने नाम कर ली। हड्डी रोग विभाग की विशेषज्ञ टीम ने उत्तराखण्ड में पहली बार रिवीजन एल्बो जॉइंट रिप्लेसमेंट कर दिखाया, जिससे ऋषिकेश की 54 वर्षीय महिला मरीज को नया जीवन मिला।
दो वर्ष पूर्व मुंबई में हुआ कोहनी प्रत्यारोपण खराब होने से उनका हाथ ढीला पड़ गया था और तेज दर्द ने जीवन को असहनीय बना दिया था। लेकिन श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल की कुशल टीम ने वह कर दिखाया जो अब तक केवल देश के चुनिंदा मेट्रो अस्पतालों में संभव था।

अस्पताल के चेयरमैन श्री महंत देवेन्द्र दास महाराज ने कहा—
“यह उत्तराखण्ड के मरीजों के लिए गर्व का क्षण है। अब जटिलतम सर्जरी भी यहीं उपलब्ध हैं, महानगरों की दूरी तय करने की जरूरत नहीं।”

ऑपरेशन की चुनौती
हड्डी रोग विभाग के प्रोफेसर डॉ. कुणाल विज के अनुसार—
“रिवीजन सर्जरी में पुराना इम्प्लांट निकालना और नया लगाना मिलीमीटर स्तर की सटीकता मांगता है। पुरानी सर्जरी के कारण नसें और टिश्यू आपस में चिपक जाते हैं, जिससे जोखिम कई गुना बढ़ जाता है। देशभर में भी कोहनी प्रत्यारोपण के मामले दुर्लभ हैं।”

टीमवर्क की मिसाल
इस सफलता में डॉ. कुणाल विज, डॉ. पवन रावत, डॉ. योगेश आहूजा, डॉ. निशिथ गोविल, डॉ. पराग अग्रवाल, डॉ. जितेन्द्र, डॉ. असीम चटवाल और ओ.टी. टेक्नीशियन व सहयोगी स्टाफ का महत्वपूर्ण योगदान रहा। ऑपरेशन के बाद महिला का हाथ सामान्य रूप से चलने लगा और उन्हें स्वस्थ होकर डिस्चार्ज कर दिया गया।

 

 

-रिवीजन एल्बो रिप्लेसमेंट: क्यों है चुनौतीपूर्ण?
हड्डी रोग विभाग के प्रोफेसर डॉ. कुणाल विज ने बताया कि ऐसे मामलों में पुरानी सर्जरी के दौरान नसें और टिश्यू आपस में चिपक जाते हैं, जिससे ऑपरेशन के दौरान उन्हें अलग करना अत्यंत जोखिम भरा होता है। पुराने इम्प्लांट को निकालकर नया इम्प्लांट लगाना एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें मिलीमीटर स्तर की सटीकता और अत्यधिक अनुभव की आवश्यकता होती है। घुटना व कूल्हा प्रत्यारोपण की तुलना में कोहनी प्रत्यारोपण के मामले देश में भी दुर्लभ हैं, और आमतौर पर केवल मेट्रो शहरों में ही किए जाते हैं।

-टीमवर्क से मिली सफलता
इस सर्जरी को डॉ. कुणाल विज, डॉ. पवन रावत, डॉ. योगेश आहूजा, डॉ. निशिथ गोविल, डॉ. पराग अग्रवाल, डॉ. जितेन्द्र, डॉ. असीम चटवाल और ओ.टी. टेक्नीशियन व सहयोगी स्टाफ की टीम ने अंजाम दिया। ऑपरेशन के बाद महिला का हाथ सामान्य रूप से चलने लगा और उन्हें अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया।

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