उत्तराखंड

आध्यात्म: कर्म सबसे पहले, कर्म पर निर्धारित है मानव जीवन, समझें,,

देशः मानव जीवन पाप और पुण्य भोगने के लिए प्राप्त हुआ है। पुण्य से सुख और पापों से दुःखों की प्राप्ति होती हे। इसलिए मनुष्य कर्मानुसार समय-समय पर सुख और दुःख प्राप्त करता है। सर्दी-खांसी, जुखाम, बुखार, शरीर में पीड़ा, मच्छर, खटमल जैसे दुःख मानव को अपने कर्मफल के हिसाब से भोगने पड़ते हैं। तो वहीं गलत आचरण के फलस्वरूप भूकम्प, बादल फटना, अधिक ठंड-गर्म जैसी प्राकृतिक आपदों का दुःख प्रकृति के दंड स्वरूप प्राप्त होता है। जिससे मनुष्य को कुछ सीख मिलती है और साथ ही नुकसान भी उठाना पड़ता है।

दुःख शब्द को सुनते ही प्राणिमात्र के मुख पर कुछ अजीबो-गरीब भाव दृष्टिगोचर होने लगते हैं। इस संसार का ही नहीं वरन् स्वर्गादि लोक में स्थित हर प्राणी या देवता दुःख की परिस्थिति से गुजरा हुआ होता है। न्यायशास्त्र में कहा है, सर्वेषां प्रतिकूलवेदनीयं दुःखम्। अर्थात् प्राणिमात्र के लिए अनुकूलता की संवेदना ही सुख है। श्रीमद्भगवद् गीता में सुख की उत्पत्ति सत्व गुण से तथा रजोगुण से दुःख से उत्पत्ति मानी गई है। आचार्य मनु ने सुख तथा दुःख के लक्षण इस प्रकार किए हैं।

सर्वं परवशं दुखं सर्वं आत्मवशं सुखम्।
एतत् विद्यात् समासेन लक्षणं सुख-दुःखयोः।।
अर्थात् पराधीनता ही सबसे बड़ा दुःख तथा स्वाधीनता ही सबसे बड़ा सुख है। इसी को संक्षेप में सुख तथा दुःख का लक्षण समझना चाहिए। इसी बात को बाबा तुलसीदास भी लिख गए कि-पराधीन सपनेहु सुख नाही।

अब हम दुःख के स्वरूप को समझकर दुःख के प्रकार को जानेंगे।
न्याय-शास्त्र में दुःखानुभव के साधन को ले कर के दुःखों को दो भागों में बांटा गया है।
शारीरिक और मानसिक दुःख। ये दोनों कैसे उत्पन्न होते हैं? तो पौराणिक मान्यता के अनुसार तो यह है कि पापों से तो दुःखोत्पत्ति तथा पुण्यों के प्रभाव से सुखोत्पत्ति होती है। इसलिए कहा भी गया है कि-
‘पुण्यस्य फलमिच्छन्ति पुण्यं नेच्छन्ति मानवाः।
पापस्य फलं नेच्छन्ति पापं कुर्वन्ति यत्नतः।।’

अर्थात् मानव पुण्य के फल की यानी सुख की इच्छा तो करते हैं किंतु जिससे सुख उत्पन्न होता है, उस पुण्यक कर्म को नहीं करते। ठीक उसके विपरीत पाप के फल अर्थात् दुःख को नहीं चाहते, लेकिन पाप यत्नपूर्वक करते हैं।

सभी भारतीय शास्त्रों की वेदों की पुराण, स्मृति (धर्मशास्त्र) आगम (तन्त्र) तथा दर्शनों की रचना ऋषि-मुनियों ने मानव मात्र के लिए सुख की कामना से की है, या फिर यूं समझिए कि उपर्युक्त सकल रचनाएं दुःखों की निवृत्ति के लिए की हैं।

सांख्य शास्त्र ने दुःखों का वर्गीकरण तीन भागों में किया है।
आध्यात्मिक, आधिभौतिक, आधिदैविक।
इनमें से सबसे पहले दुःख को समझते हैं कि वो किस प्रकार का दुःख है।

आध्यात्मिक दुःख का वर्गीकरण सांख्यशास्त्र में दो प्रकार से किया गया है-शारीरिक और मानसिक।
शारीरिक दुःख है जैसे-बुखार, जुकाम, खांसी, शरीर में पीड़ा इत्यादि।

मानसिक दुःख वो हैं जैसे-प्रिय का वियोग होना, अप्रिय वस्तु का मिलना, मन में संताप, क्लेश आदि का होना।

आधिभौतिक-आधिभौतिक दुःखों की श्रेणी में वो दुःख आते हैं जैसे मनुष्य से प्राप्त दुःख, पशु-पक्षी, सर्प, व्याघ्र, सिंह, घड़ियाल, मच्छर, खटमल आदि से प्राप्त दुःख को आधिभौतिक दुःख की श्रेणी में गिना जाता है। राजनेताओं से जनता को दिए गए दुःख को भी आधिभौतिक दुःख की श्रेणी मे रखा जाता है।

आधिदैविक-देवताओं के द्वारा दिए जाने वाले दुःख को आधिदैविक दुःख कहा जाता है। यथा-ग्रहों से संबंधित, भूत-प्रेत, पिशाच, यक्ष, राक्षस आदि से संबंधित दुःख को आधिदैविक दुःख कहा जाता है। अब प्रश्न उठता है कि इनमें से कुछ तो देवता ही नहीं हैं तो इनके द्वारा दिया गया दुःख आधिदैविक कैसे हुआ? तो इसका उत्तर है कि भले ही ये देवता नहीं हैं किंतु ये देवसदृश शक्तियों को तो धारण किए हुए रहती हैं।

दूसरे आधिदैविक की श्रेणी में ये दुःख भी आते हैं। जैसे अतिशीत, अतिवर्षा (बादलों का फटना), अतिगर्मी, भूमि कम्पन यानी की किसी प्रकार की प्राकृतिक आपदा व महामारियां आधिदैविक दुःख हैं।

दुःख निवृत्ति के उपाय

अच्छा आचरण करने वाले बनें।

सदैव सत्य बोलें।

निकृष्ट लोगों से वैर तथा प्रीति दोनों का त्याग करें

सदैव अच्छे लोगों का साथ करें।

अधिक महत्वाकांक्षी न बनें।

संसार में अनासक्त भाव से रहें। जैसे जल में कमल रहता है।

प्रकृति विरुद्ध कार्य न करें।

यदि उपर्युक्त नियमों का पालन किया जाए तो हम आनन्दमय हो जाएंगे। क्योंकि हम आनन्दमय ही हैं।
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत्।।
ओउम् शान्तिः।। शान्तिः।। शान्तिः।।

आध्यात्म: कर्म सबसे पहले, कर्म पर निर्धारित है मानव जीवन, समझें,,

SGRRU Classified Ad
SGRRU Classified Ad
SGRRU Classified Ad
66 Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

The Latest

To Top