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जब रियाजुद्दीन के वारिस बनाते हैं रावण, तो चमक उठता है ऋषिकेश का दशहरा

 

 

 

ऋषिकेश।

धर्म और मज़हब की दीवारें जब ढह जाती हैं, तब इंसानियत और सामाजिक सौहार्द की सबसे खूबसूरत मिसाल जन्म लेती है। ऐसी ही मिसाल कायम की है मुजफ्फरनगर (उत्तर प्रदेश) निवासी रियाजुद्दीन के परिवार ने, जो पिछले छह दशकों से ऋषिकेश में रावण, कुंभकरण और मेघनाद के पुतले बनाकर दशहरे के पर्व को रौशन करता आ रहा है।

 

1964 से शुरू हुई परंपरा

 

साल 1964 में रामलीला कमेटी आइडीपीएल ने पहली बार दशहरे पर रावण दहन का आयोजन किया था। उसी वर्ष रियाजुद्दीन ने यहां पहला रावण का पुतला बनाकर एक ऐसी परंपरा की नींव रखी, जो आज भी जीवंत है। रियाजुद्दीन के निधन के बाद उनके पुत्र शफीक अहमद और रफीक अहमद ने इस जिम्मेदारी को संभाला और निरंतर इसे आगे बढ़ाते रहे।

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कोरोना काल में भी निभाई जिम्मेदारी

 

दो वर्ष का कोरोना काल उनके लिए सबसे कठिन रहा। उस दौरान विशाल पुतले नहीं बनाए जा सके, लेकिन परंपरा को टूटने नहीं दिया गया। छोटे-छोटे पुतले तैयार किए गए और उनका गंगा में विसर्जन किया गया। शफीक अहमद बताते हैं— “हमारे लिए यह सिर्फ कला नहीं, बल्कि एक विरासत है। इसे किसी भी हाल में खत्म नहीं होने देंगे।”

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सबसे ऊंचे पुतलों का इतिहास

 

रामलीला कमेटी ने वर्ष 1970 में ऋषिकेश में अब तक का सबसे ऊंचा रावण का पुतला तैयार कराया था। यह पुतला 75 फुट ऊंचा था, जबकि कुंभकरण 60 फुट और मेघनाद 55 फुट ऊंचे बनाए गए थे। इन तीनों पुतलों के शिल्पकार भी रियाजुद्दीन ही थे। इसके बाद से लेकर अब तक उनका परिवार ही त्रिवेणी घाट, आइडीपीएल, रानीपोखरी और लक्ष्मण झूला क्षेत्र में दशहरे के पुतले तैयार करता आ रहा है। वर्तमान में शफीक और रफीक 50 से 60 फुट ऊंचे पुतले बनाकर असत्य पर सत्य की विजय का संदेश लोगों तक पहुंचा रहे हैं।

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धर्म से ऊपर इंसानियत

 

रियाजुद्दीन का परिवार मानता है कि भगवान और अल्लाह का स्वरूप एक ही है। उनके लिए धार्मिक वर्जनाओं से अधिक सामाजिक सौहार्द सबसे बड़ी पूंजी है। यही वजह है कि दशहरे जैसे हिंदू पर्व को सजाकर यह मुस्लिम परिवार न केवल सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखता है, बल्कि पूरे समाज को यह संदेश भी देता है कि धर्म का असली स्वरूप दिलों को जोड़ना है, तोड़ना नहीं।

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